Tulsidas Biography in Hindi: तुलसीदास (जन्म: संवत १५५४, विक्रमी संवत, लगभग १४९७ ईस्वी) हिंदी साहित्य के महान कवि और संत थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भक्ति और नैतिकता के विचारों को प्रचारित किया। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ 'रामचरितमानस' है, जो भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
तुलसीदास का जन्म विक्रम संवत १५५४ (लगभग १४९७ ईस्वी) में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित राजापुर गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। तुलसीदास के जन्म के समय उनके परिवार और समाज में बहुत ही विशेष परिस्थितियाँ थीं। कहा जाता है कि उनका जन्म के समय उनके शरीर पर दाँत थे, जो असामान्य माना जाता है और इसे भविष्य में उनके महान होने का संकेत माना गया।
जन्म के बाद उन्हें उनके माता-पिता द्वारा त्याग दिया गया था, और उनकी परवरिश एक साधु ने की। उन्होंने बचपन से ही धार्मिक ग्रंथों और संस्कृत भाषा की शिक्षा प्राप्त की। उन्हें बचपन से ही राम कथा में गहरी रुचि थी, और वे भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति के लिए जाने जाते थे। तुलसीदास के जीवन में भक्ति और आध्यात्मिकता की जड़ें बचपन से ही गहरी थीं, जिसने उन्हें अपने जीवन के बाद के वर्षों में महान कवि और संत बनने के लिए प्रेरित किया।
शिक्षा और विवाह
तुलसीदास की शिक्षा का आरंभ वाराणसी में हुआ, जहाँ उन्होंने संस्कृत भाषा और साहित्य के साथ-साथ वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। वे विशेष रूप से रामचरितमानस के लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं, जो रामायण का एक अवधी भाषा में काव्यात्मक अनुवाद है। उनकी शिक्षा में अध्यात्म, दर्शन, और भक्ति संगीत के प्रति गहरी रूचि विकसित हुई, जिसने उन्हें अपने लेखन और काव्य में प्रेरित किया।
तुलसीदास का विवाह रत्नावली नामक एक युवती से हुआ था। उनकी वैवाहिक जीवन के कुछ प्रसंगों का वर्णन विभिन्न लोककथाओं और लेखों में मिलता है। कहा जाता है कि तुलसीदास अपनी पत्नी से अत्यधिक मोहित थे और उनके बिना रह पाना उनके लिए कठिन था। एक प्रसंग के अनुसार, एक बार जब रत्नावली अपने मायके गई हुई थीं, तुलसीदास उनके पीछे-पीछे वहां पहुँच गए, जिससे रत्नावली को काफी निराशा हुई। उन्होंने तुलसीदास से कहा कि अगर वे अपनी भक्ति और ऊर्जा को भगवान में लगाते, तो उन्हें आध्यात्मिक लाभ होता।
रत्नावली के इस कथन ने तुलसीदास के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। इस घटना के बाद, उन्होंने विश्वास किया कि उनकी असली पत्नी तो भगवान राम हैं, और उन्होंने अपना जीवन भगवान राम की भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया। उनकी इस अध्यात्मिक यात्रा ने उन्हें एक महान संत और कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया, और उनके द्वारा रचित ग्रंथ आज भी हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखते हैं।
रामचरितमानस और अन्य रचनाएँ:
तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दू धर्म और संस्कृति में अमिट छाप छोड़ी है। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति, रामचरितमानस, भगवान राम की कथा का एक काव्यात्मक वर्णन है, जिसे उन्होंने अवधी भाषा में लिखा। रामचरितमानस न केवल हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि यह भारतीय साहित्य में भी एक उत्कृष्ट कृति मानी जाती है। इसके अलावा, तुलसीदास ने कई अन्य धार्मिक और फिलोसोफिकल ग्रंथ लिखे, जिनमें विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली और हनुमान चालीसा शामिल हैं।
रामचरितमानस: इसे तुलसीदास की मास्टरपीस माना जाता है। रामचरितमानस में, तुलसीदास ने भगवान राम के जीवन, उनके चरित्र, धर्म, नैतिकता और आदर्शों को अपनी कविता के माध्यम से जीवंत किया है।
विनयपत्रिका: इस रचना में तुलसीदास ने भक्ति, विनय और आत्मसमर्पण की भावनाओं को व्यक्त किया है। यह ग्रंथ भगवान राम और हनुमान की भक्ति में लिखे गए भजनों और कविताओं का संग्रह है।
दोहावली: इसमें तुलसीदास के दोहे संग्रहीत हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उनके विचार प्रस्तुत करते हैं। इसमें नैतिकता, धर्म, भक्ति और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाया गया है।
कवितावली: इसमें तुलसीदास की विभिन्न विषयों पर लिखी गई कविताएँ संकलित हैं। यह उनकी गहरी भावनाओं और फिलोसोफिकल विचारों को प्रकट करती है।
गीतावली: इसमें तुलसीदास के भगवान राम के जीवन के विभिन्न चरणों पर आधारित गीत संग्रहीत हैं। गीतावली भक्ति और आध्यात्म के भावों को व्यक्त करती है।
हनुमान चालीसा: हनुमान चालीसा तुलसीदास की एक अत्यंत लोकप्रिय और प्रिय रचना है, जिसमें भगवान हनुमान की महिमा, शक्ति और भक्ति का गान किया गया है। यह दोहों का एक संग्रह है जिसमें हनुमानजी की आराधना की गई है।
तुलसीदास की ये रचनाएँ न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि वे साहित्यिक और नैतिक मूल्यों के लिए भी प्रशंसित हैं। उनकी गहरी अध्यात्मिकता और भक्ति की भावना उनकी सभी कृतियों में प्रमुख रूप से व्यक्त होती है।
दार्शनिक और धार्मिक विचार:
तुलसीदास के दार्शनिक और धार्मिक विचार उनकी रचनाओं में व्यापक रूप से प्रकट होते हैं, जो उन्हें एक महान संत, कवि और दार्शनिक के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनके विचार भक्ति, धर्म, नैतिकता, और आध्यात्मिकता के गहरे अध्ययन पर आधारित हैं।
भक्ति: तुलसीदास के विचारों में भक्ति केंद्रीय स्थान रखती है। उन्होंने भक्ति को जीवन का सार माना और इसे आत्मा की परमात्मा से मिलन का मार्ग बताया। उनके अनुसार, भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा और प्रेम ही जीवन का उद्देश्य है।
धर्म और नैतिकता: तुलसीदास ने धर्म को नैतिकता और सत्य के पालन के रूप में देखा। उनके विचार में, एक धार्मिक जीवन वह है जो नैतिक मूल्यों और आदर्शों के अनुसार जिया जाता है।
कर्म और मोक्ष: तुलसीदास ने कर्म के सिद्धांत पर बल दिया। उनका मानना था कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है, और मोक्ष या मुक्ति कर्म के द्वारा ही संभव है।
ज्ञान और आध्यात्मिकता: तुलसीदास ने आध्यात्मिक ज्ञान को विशेष महत्व दिया। उनके अनुसार, ज्ञान ही वह प्रकाश है जो मनुष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर सत्य की ओर ले जाता है।
सेवा और समर्पण: तुलसीदास ने सेवा और समर्पण को भी महत्वपूर्ण माना। उनका विचार था कि भगवान की सेवा और समर्पण के द्वारा ही मनुष्य आत्मिक संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।
तुलसीदास के दार्शनिक और धार्मिक विचार उनके समय के समाज को प्रभावित करने के साथ-साथ आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। उनकी शिक्षाएँ और सिद्धांत आज भी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में मार्गदर्शन का काम करते हैं।
tulsidas poems in hindi
तुलसीदास की रचनाओं में उनकी भक्ति और अध्यात्म की गहराई को देखा जा सकता है। उनकी कविताओं में श्री राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उनके विचार सामने आते हैं। यहाँ कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ दी जा रही हैं जो तुलसीदास की रचनाओं से ली गई हैं:
दोहे:
अंत समय रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।
कलियुग केवल नाम अधारा
सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा।
चौपाई:
- श्री रामचरितमानस से:
राम किसोरि कमल लोचन, पूजिहिं मन कामद ईश॥
- बिनय पत्रिका से:
तुलसी तजि सब बानी बिग्यानी, लोचन अभिराम स्यामल गात॥
गीत:
तुम्हरे जानकी जीवन, सदा अनाथ के नाथ।
तुलसी है विप्रदेह, राखिये लाज बिनाथ॥
तुलसीदास की रचनाएँ मुख्य रूप से उनके द्वारा लिखित 'रामचरितमानस', 'दोहावली', 'कवितावली', 'विनयपत्रिका', और 'गीतावली' आदि में समाहित हैं। उनकी कविताएँ और दोहे हिंदी साहित्य में उन्हें एक अमर स्थान प्रदान करते हैं।
निधन:
तुलसीदास का निधन 1623 ईस्वी में अस्सी घाट, वाराणसी में हुआ। उनकी आयु लगभग 91 वर्ष की थी। उनके निधन के समय, उन्होंने हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन में अमिट छाप छोड़ी थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके अनुयायी और भक्तों ने उन्हें एक संत के रूप में सम्मानित किया और उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का प्रयास किया। तुलसीदास की रचनाएँ, विशेष रूप से रामचरितमानस, उनके निधन के बाद भी लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय रही हैं और आज भी उनकी रचनाएँ धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में पढ़ी और सुनाई जाती हैं। उनके निधन के साथ ही हिंदी साहित्य और भक्ति साहित्य में एक युग का अंत हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएँ और काव्य आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।
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