Prenuptial Agreement in India in hindi: प्रीनप्टियल एग्रीमेंट (Prenuptial Agreement) को हिंदी में "पूर्व-विवाह समझौता" या "विवाहपूर्व संधि" कहा जाता है। यह एक लिखित समझौता होता है जो विवाह से पहले दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित होता है। इसका मुख्य उद्देश्य विवाहित जीवन में आर्थिक मामलों और संपत्ति के विभाजन को लेकर संभावित विवादों का पूर्वनिर्धारण करना होता है, खासकर यदि विवाह का अंत तलाक में हो।
प्रीनप्टियल एग्रीमेंट में विवाह से पहले दोनों पार्टियों की संपत्ति और वित्तीय दायित्वों का विवरण होता है, और यह निर्धारित करता है कि विवाह के बाद अर्जित संपत्ति और दायित्वों का विभाजन कैसे किया जाएगा। यह समझौता आमतौर पर व्यक्तिगत संपत्ति, विभिन्न प्रकार के दायित्व, गुजारा भत्ता, और संतानों की देखभाल और समर्थन से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए तैयार किया जाता है।
हालांकि, प्रीनप्टियल एग्रीमेंट की वैधता और लागू करने की शर्तें विभिन्न देशों के कानूनों में भिन्न होती हैं, और इसे अक्सर उचित कानूनी परामर्श के बाद ही तैयार किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समझौता कानूनी रूप से मान्य और प्रभावी है।
Prenuptial Agreement in India in hindi
भारत में, प्रीनप्टियल एग्रीमेंट (Prenuptial Agreement) या विवाहपूर्व समझौता एक अपेक्षाकृत नई अवधारणा है और इसकी कानूनी मान्यता और प्रभावशीलता अभी भी विवाद का विषय है। भारतीय कानूनी प्रणाली में, विवाहपूर्व समझौते को सीधे तौर पर मान्यता प्रदान नहीं की गई है, और इस प्रकार के समझौते का अस्तित्व और प्रभाव विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
प्रीनप्टियल एग्रीमेंट का उद्देश्य:
विवाहपूर्व समझौते का मुख्य उद्देश्य संभावित विवादों को कम करना है जो विवाह के दौरान या विवाह के समापन पर उत्पन्न हो सकते हैं, खासकर वित्तीय मामलों और संपत्ति के विभाजन को लेकर।
भारत में प्रीनप्टियल एग्रीमेंट की स्थिति:
- कानूनी मान्यता: भारत में विवाहपूर्व समझौते को विशेष रूप से कानूनी मान्यता प्रदान नहीं की गई है। फिर भी, यह एक अनुबंध के रूप में माना जा सकता है, बशर्ते यह भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत वैध हो।
- कानूनी प्रभावशीलता: यदि एक प्रीनप्टियल एग्रीमेंट सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करता है, तो इसे अदालतों द्वारा एक वैध अनुबंध के रूप में माना जा सकता है। हालांकि, अगर अदालत को लगता है कि समझौता किसी भी पक्ष के साथ अन्यायपूर्ण है या इसमें कोई अवैध शर्तें हैं, तो वह इसे अमान्य कर सकती है।
सावधानियां और सिफारिशें:
- भारत में विवाहपूर्व समझौते तैयार करते समय, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि समझौता कानूनी रूप से वैध हो, और इसमें सभी पक्षों के हितों का समुचित ध्यान रखा गया हो।
- इस प्रकार के समझौते को तैयार करते समय, एक अनुभवी कानूनी पेशेवर की सलाह लेना उचित होगा।
- यह भी महत्वपूर्ण है कि समझौता न्यायसंगत और संतुलित हो, और इसे सभी पक्षों द्वारा स्वेच्छा से हस्ताक्षरित किया गया हो।
क्या भारत में विवाह पूर्व समझौता वैध है?
भारत में प्रीनप्टियल अग्रीमेंट्स (पूर्व-विवाह समझौते) कानूनी रूप से वैध नहीं हैं। भारतीय कानून के तहत वर्तमान में इस प्रकार के समझौतों को मान्यता नहीं दी गई है। भारतीय विवाह और पारिवारिक कानून पारंपरिक और सामाजिक मूल्यों पर आधारित हैं, और प्रीनप्टियल अग्रीमेंट्स को आम तौर पर उन मूल्यों के विपरीत माना जाता है। हालांकि, वित्तीय समझौतों और संपत्ति के विभाजन के बारे में व्यक्तिगत समझौते कुछ परिस्थितियों में विचारणीय हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सीधे प्रीनप्टियल अग्रीमेंट्स के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है।
Judgments
मुंबई की एक पारिवारिक अदालत द्वारा एक उल्लेखनीय निर्णय में, एक पति (याचिकाकर्ता) को तलाक दिया गया, जो 22 जुलाई, 2016 को दिनांकित प्रीनप्टियल समझौते में निहित इरादों पर आधारित था, जिसे विवाह से पहले दोनों पक्षों द्वारा स्थापित किया गया था। अदालत ने देखा कि समझौते को अंजाम देते समय, दोनों पक्ष परिपक्व उम्र के थे और विपरीत स्थितियाँ उत्पन्न होने पर आपसी विच्छेद के लिए सहमत हुए थे। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी (प्रतिवादी) और उसकी माँ ने याचिकाकर्ता पर क्रूरता ढाई थी। यह माना गया कि प्रीनप्टियल समझौते के निष्पादन के पीछे मुख्य उद्देश्य भविष्य में संभावित कानूनी विवादों को टालना था, जिससे तलाक की अनुमति दी गई। इसके अतिरिक्त, अदालत ने मान्यता दी कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के तहत, उसे ऐसे दस्तावेज़ स्वीकार करने और मूल्यांकन करने का अधिकार प्राप्त है जो मामले को कुशलतापूर्वक हल करने में सहायक होते हैं।
कृष्णा अय्यर बनाम बालम्माल
कृष्णा अय्यर बनाम बालम्माल के ऐतिहासिक मामले में, पति ने अपनी पत्नी द्वारा उसके साथ सहवास करने से इनकार करने के बाद, संयुक्त अधिकारों की पुनःस्थापना के लिए दावा किया, जिससे एक समझौता हुआ। इस समझौते की शर्तों के अनुसार, पत्नी को अपने पति के पास वापस जाना था, और इसमें एक प्रावधान शामिल था कि यदि वह भविष्य में अलग रहने का निर्णय लेती है, तो पति उसे 350 रुपये का मुआवजा देगा। हालांकि, जब पत्नी वापस नहीं आई, तो पति ने अपने संयुक्त अधिकारों की पुनःप्राप्ति के लिए एक और मुकदमा दायर किया। पेश किए गए बचावों में से एक उपरोक्त समझौते का अस्तित्व था। मद्रास उच्च न्यायालय ने अंततः इस समझौते को अमान्य पाया, यह कहते हुए कि यह हिंदू कानून और सार्वजनिक नीति का उल्लंघन करता है, जिससे इसे लागू करने योग्य नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने तर्क दिया कि ऐसी व्यवस्था एक पति या पत्नी को प्राप्त नैसर्गिक संयुक्त अधिकारों का उल्लंघन करती है।
प्राण मोहन दास बनाम हरि मोहन दास
प्राण मोहन दास बनाम हरि मोहन दास मामले में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने "एक अनुबंध के आंशिक-प्रदर्शन" के सिद्धांत को लागू करते हुए एक प्रीनप्टियल समझौते की वैधता को मान्यता दी। इस सिद्धांत ने वादी को प्रश्न में संपत्ति का पुनः अधिकार प्राप्त करने से रोका। अदालत ने आगे ध्यान दिया कि चूंकि समझौता एक विवाह दलाली अनुबंध नहीं था, इसलिए यह सार्वजनिक नीति का उल्लंघन नहीं करता था, इस प्रकार इसकी वैधता को बनाए रखता था।
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